प्रयागराज
महाकुंभ की शुरुआत हमेशा से ही नागा साधुओं के स्नान से होती. नागा साधु आपको हमेशा कुंभ के समय में ही दिखाई देंगे. कुंभ खत्म होते ही नागा साधु वापस लौट जाते हैं. हालांकि, ये किसी को नहीं पता कि नागा साधु आखिरकार जाते कहां हैं. लेकिन ऐसा माना जाता है कि ये साधु तपस्या के लिए पहाड़ों और जगंलों में जाते हैं, जहां लोग उन्हें ढूंढ न पाएं. और वो वहां आराम से अपनी साधना कर सकें. नागा साधु चार प्रकार के होते हैं.
प्रयाग में होने वाले कुंभ से दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं. उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है. इनका स्वभाव काफी उग्र होता है. हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते है, ये शांत स्वभाव के होते हैं. नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को खिचड़ी नागा कहलाते हैं. इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है.
नागा साधु बनने के तीन चरण
नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिनाई से भरी होती है. साधकों को पंथ में शामिल होने के लिए तकरीबन 6 साल का समय लगता है. नागा साधु बनने के लिए साधकों को तीन स्टेज से होकर गुजरना पड़ता है. जिनमें से पहला महापुरुष, दूसरा अवधूत और तीसरा दिगंबर होता है. अंतिम संकल्प लेने तक नागा साधु बनने वाले नए सदस्य केवल लंगोट पहने रहते हैं. कुंभ मेले अंतिम संकल्प दिलाने के बाद वे लंगोट का त्याग कर जीवन भर दिगंबर रहते हैं.
भू या जल समाधि
कहा जाता है कि नागा साधुओं का दाह संस्कार नहीं किया जाता है. बल्कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि लगा दी जाती है. उनकी चिता को आग नहीं दी जाती है क्योंकि, ऐसा करने पर दोष लगता है. ऐसा इसलिए क्योंकि, नागा साधु पहले ही अपना जीवन समाप्त कर चुके होते हैं. अपना पिंडदान करने के बाद ही वह नागा साधु बनते हैं इसलिए उनके लिए पिंडदान और मुखाग्नि नहीं दी जाती है. उन्हें भू या जल समाधि दी जाती है.
5 लाख नागा साधु
हालांकि, उन्हें समाधि देने से पहले स्नान कराया जाता है और इसके बाद मंत्रोच्चारण कर उन्हें समाधि दे दी जाती है. जब नागा साधु की मृत्यु हो जाती है तो उनके शव पर भस्म लगाई जाती है और भगवा रंग का वस्त्र डाले जाते हैं. समाधि बनाने के बाद उस जगह पर सनातन निशान बना दिया जाता है ताकि लोग उस जगह को गंदा न कर पाए. उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ विदा किया जाता है. नागा साधु को धर्म का रक्षक भी कहा जाता है. नागा साधुओं के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है, जिसके लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं.
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