मुंबई.
इस सप्ताह घरेलू शेयर बाजारों की दिशा कंपनियों के तिमाही नतीजों, मुद्रास्फीति के आंकड़ों और विदेशी निवेशकों की गतिविधियों से तय होगी। बाजार के विश्लेषकों ने यह राय जताई है। इस सप्ताह इन्फोसिस, रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी बड़ी कंपनियों के दिसंबर तिमाही के नतीजे आने वाले हैं। इसके अलावा निवेशकों की नजर कच्चे तेल की कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल पर भी रहेगी। बीते सप्ताह अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने तथा अमेरिका में बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ने से निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई थी।
बाजार के विश्लेषकों के मुताबिक भारतीय शेयर बाजारों के लिए यह सप्ताह उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। निवेशक बड़ी कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस सप्ताह इन्फोसिस, रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, एचडीएफसी एएमसी, एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी और एक्सिस बैंक जैसे बड़ी कंपनियां अपने दिसंबर तिमाही के नतीजों की घोषणा करेंगी।
स्थानीय बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) के बीच संघर्ष जारी है। बाजार के एक अन्य विश्लेषक ने कहा कि सोमवार को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के आंकड़े आएंगे, जो बाजार के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के आंकड़े मंगलवार को जारी किए जाएंगे।
विश्लेषकों ने कहा कि बाजार में तेज गिरावट कई कारणों से आई है। इसमें विदेशी कोषों की निकासी, कंपनियों के तीसरी तिमाही के उम्मीद से कमजोर नतीजे, डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट और अमेरिका में 10 साल के बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़ना जैसे कारक शामिल हैं। इसके अलावा डॉलर इंडेक्स में मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल ने महंगाई को लेकर चिंताओं को बढ़ा दिया है, जिससे निवेशकों की धारणा और प्रभावित हुई है।’
शुक्रवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, नवंबर, 2024 में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) की वृद्धि दर सालाना आधार पर बढ़कर छह महीने के उच्चस्तर 5.2 प्रतिशत पर पहुंच गई। आगे कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजों पर सभी की निगाह रहेगी। सप्ताह के दौरान आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों के साथ अन्य के दिसंबर तिमाही के नतीजे आ रहे हैं। साथ ही मुद्रास्फीति जैसे वृहद आर्थिक आंकड़े भी बाजार को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वैश्विक मोर्चे की बात की जाए, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था विशेष रूप से श्रम बाजार के आंकड़े और महंगाई का रुख विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।
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